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बाज़ार-1 / मणि मोहन

पैर नहीं थकते
आँखें थक जाती हैं
इस बाज़ार में

बच्चों की तरह
उँगली पकड़कर
साथ चलते हैं सपने
और फिर गुम जाते हैं
रंग-बिरंगी ख़ुशबूदार भीड़ में

मैं सपने तलाशता हूँ
इस बाज़ार में
और फिर
पैर भी थकने लगते हैं ।