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बाजार / रेखा चमोली
Kavita Kosh से
1
अब दिल की अर्थव्यवस्था में क्या हिस्सेदारी ?
फिर भी अधिकांश गिरवी पडे हैं
अनेकों अन्य वस्तुआंे के साथ
विचार और संवेदनायें जाने कहॉ जिवाश्म बनी पड़ी हैं
जिन पर करोडों वर्ष बाद कोई
मालिकाना हक जता
रातों रात बन जाएगा अरबपति
इन जिवाशमों के छोटे-छोटे टुकडों के लाकेट पहन
कई बुद्विजीवी हो जाएगे मंचासीन ।
2
जितनी तेजी से बढ़ रही हैं सीढीयॉ
उतनी ही तेजी से
गुम हो रही हैं पगडंडियॉ
दूर से ही दिमाग को नियंत्रित
कर रहे उपकरणों में खराबी आ गयी है
जिसे ठीक करने को ढूंढे जा रहे हैं इंजीनियर
धार्मिक स्थलों की भव्यता के साथ ही
बढ़ती जा रही हैं
भिखमंगों की कतारें ।