भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बाजै छै बीन / भाग-12 / सान्त्वना साह

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ता-ता थैया

छम-छमा-छम ता-ता-थइया
बोलै नुनू बाबा भैया
टिकारी पर दै मुसकैया
सिसकारी पर भींजै रजैया
पां-पां-पां-पां बोलै मैया
डेगा-डेगी थर-थर पैयां
थाही-थाही गोड़ धरैया
डिग-डिग, डिग-डिग झूले बहिया
पुचकारी केॅ चूमै अँखियाँ
किलकारी सेॅ पुलकै गुइयाँ।

शस्य श्यामला धरती माय

शस्य श्यामला धरती माय के
ऐंगना छै विशाल हे
चंदन टीक्का भाल हे नाम

शोभै राजमुकुट हिमगिरि
सागर चरण परखारै तिरि
गंगा सीचै बही
हरियर खेत खमार हे
नदी-नहर दुआर हे ना

गौतम बुद्ध, महावीर, गाँधी
लक्ष्मी बाई, इन्दिरा गाँधी
त्याग-तपस्या-सेवा
साहस केरी आँधी हे
प्रेम डोर सेॅ बाँधी हे ना

सादा जीवन-उच्च विचार
शान्ति एकता के सहचार
देश-सेवा खातिर
राजपाट के त्याग हे
साक्षी इतिहास हे ना।

गूंजा

गूंजा चढ़लै गाछी
मुँहोॅ में लागलै माछी
कानी कहै, चाची
काटी लेलकोॅ माछी
कोदरा लेॅ केॅ काटी
मारी देॅ है माछी
सच कहै छै चाची
आबेॅ नै चढ़ियो गाछी।

वनरोपन

धरती मैया के कथा हो भैया
जानिहोॅ ध्यान लगाय केॅ
वनरोपन-अभियान सफल करी
आनिहोॅ नया विहान केॅ
गाछ-बिरीछ आरो साधु-संत में
अन्तर भेद नै भाव हो
छाँही-फोॅल आक्सीजन दै केॅ
बाँटै छै सदभाव हो
नदी-नहर, तालाब-किनारा
नाला-सड़क-बगान हो
अगल-बगल में गाछ लगाय केॅ
माटी रोॅ सम्मान हो
खाली जमीन, पथरीला इलाका
बंजर के उद्धार हो
गाछ-बिरिछ तोय खूब लगाय केॅ
धरती के सत्कार हो।

छोटोॅ परिवार

हम्में एक आरो मुनिया दू
मम्मी तीन आरो पप्पा चार
चार जनोॅ सें छै संसार
दादा-दादी रोॅ सत्कार
चंदा एक आरो सूरज दू
धरती-तीन गिनोॅ, चार-अकास
कत्तेॅ सुन्दर छै परिवार
दिन आरो रात के सत्कार
दू बुतरू सें खुश सरकार
माटी पर नै पड़तै भार
दूध दही रोॅ बहतै धार
जय-जय-जय छोटोॅ परिवार।

मानस नमन

नमन प्रथमेश
मानस-गणेश
धुंधर केश
सुन्दर भेष
अजब रूपेश
गजब भवेश
ममा राकेश
चचा राजेश
कका नरेश
पूजेॅ महेश
नमन प्रथमेश
मानस-गणेश।

सुथियार

ऊसर-टीकर बोॅन-बहियार
उजरी कारी बकरी चार
कूदी-फांदी नद्दी पार
भेंटी गेलै एक सुथियार
छुटलोॅ हमरोॅ घोॅर-परिवार
कक्का-काकी, बुतरू चार
यहीं रही करवोॅ व्यापार
सोन-पाट-साबै के जोगाड़
रस्सी बाँटी बेची बजार
मिली केॅ रहवोॅ छप्पर छार
जोगिहें तोहें ऐंगन दुआर
करवौ हम्में तोरोॅ सम्हार,
बड्डी निक्कोॅ तोरोॅ विचार
मारिहोॅ नै कहियो साटोॅ के मार।

हमरी माय

सबसे अच्छी हमरी माय
भोरे-भोर गांग नहाय
मन्दिर जाय, भोग लगाय
फूल-चंदन मिसरी लाय
ठोंकी-ठोंकी रोज सुताय
किरिन फुटै तेॅ दियेॅ जगाय
मुँ धोलाय केॅ दूध पिलाय
दही-चूड़ा-गुड़ खिलाय
कोरेॅ लगाय, झूला झुलाय
सोनपरी के खिसा सुनाय
कान धरी केॅ चान देखाय
सबसें अच्छी हमरी माय।

लाल घंघरी

सपना में देखलाँ एक गिलहरी
फुदकै रहै पिन्ही केॅ लाल घंघरी
पुछड़ी में झुलै सोन-सिकड़ी
मुस्कै रहै देखी तीन मकड़ी
बनरा केॅ शोभै चश्मा-घड़ी
बनरी केॅ झूलै अंगिया हरी
बौंसली बजावै बाघ-बकरी
कोयली सुनावै धुन कजरी
मौलै रहै बोगला छोड़ि मछरी
नाचै रहै भालू बजाय खंजरी
हथिनी जे झूमै खड़ी-खड़ी
दादुर-पपीहा झाड़-झंखरी।

फूलझड़ी

फूलझड़ी-फूलझड़ी-फूलझड़ी
गोल-गोल झरै मोती-लड़ी
ता थैया नाचै फूलपरी
धा-धिन-धा बाजै धा थपड़ी
दूध-दही संग ताल मिसरी
जंडा के रोटी एक टुकड़ी
मैना के बच्चा दू-चार झुकरी
डुबकी लगावै तालाब-पोखरी
सुग्गा-सुग्गी छम-छम री
डैना उठावै झटक टेंगरी।

ईद-बकरीद

जेन्होॅ कि ईद
होन्हे बकरीद
दोनों सें प्रीत
हार नै जीत
रजिया-हमीद
सिरनी खरीद
कुरता कमीज
पिन्ही केॅ सीध
सेवय लजीज
खाय केॅ रीझ
चन्दा के दीद
झूमै शहीद
अद्भुत छै ईद
गद्गद् फरीद।

भोलू के गाय

भोलू के गाय
गेलै हेराय
गामोॅ मेॅ आय
भेलै ढोलाय
खोजी केॅ दय
आनी देॅ गाय
कहै ढोढ़ाय
चूल्हो पझाय
देभौं बोलाय
सूरो के माय
हुनिये मंगाय
करथौं भलाय
करकी सिलेबी
चितकबरी गाय
खल्ली कोराय
कैली खेलाय
नजर जुड़ाय
सब देखी केॅ गाय।

सुन-सुन गे रजनी

सुन-सुन गे रजनी
तोता-मैना-सुगनी
हाथोॅ में देवौ कंगनी
गोड़ोॅ में देवौ पैजनी
कानी में देवौ झुलनी
नाकी में देवौ नथुनी
भैया दै छौ खिरनी
लाल पीरोॅ ओढ़नी
खाय लेॅ दू टा मोकनी
नै तेॅ देवौ ठोकनी
भाग-भाग गे रजनी
काटी लेतौ बिरनी।