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बाढ़-3 / अच्युतानंद मिश्र

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जब डूब रहा था
सब-कुछ
तुम अपने
मज़बूत किले में बंद थे

जब डूब चुका है
सब-कुछ
तुम्हारे चेहरे पर अफ़सोस है
तुम डूबे हुए आदमी के
प्रतिनिधि हो...