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बाबा / सुलोचना वर्मा
Kavita Kosh से
मौन अडिग स्थिर रहकर
अपना फ़र्ज़ निभाता है
हाँ, तभी तो खड़ा हिमालय
बाबा की याद दिलाता है
गंभीर होकर भी चंचल
निच्छल जब वो बहता है
हाँ नदी ये ब्रह्मपुत्र
बाबा की याद दिलाता है
कड़ी ज़ुबान ताशीर मीठी
शीतल छाया देता है
हाँ नीम का पेड़ मुझे
बाबा की याद दिलाता है