मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
बाबू<ref>मगध में लोग पुत्र को प्यार से बाबू कहते हैं</ref> सिर जोगे<ref>योग्य</ref> टोपी त न आएल।
बाबू के ठग के ले गेल, सुनहु लोगे।
बाबू के सेंतिए<ref>निःशुल्क ही, मुफ्त में ही</ref> ले गेल, सुनहु लोगे।
रामजी कोमल बर लइका<ref>नादान या अबोध लड़का</ref> सुनहु लोगे॥1॥
बाबू देह जोगे कुरता त न आएल।
बाबू के ठग के ले गेल, सुनहु लोगे।
बाबू के सेंतिए ले गेल, सुनहु लोगे।
रामजी कोमल बर लइका, सुनहु लोेगे॥2॥
बाबू गोड़ जोग धोती त न आएल।
बाबू के ठग के ले गेल, सुनहु लोगे।
बाबू के सेंतिए ले गेल, सुनहु लोगे।
रामजी कोमल बर लइका, सुनहु लोगे॥3॥
शब्दार्थ
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