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बारिशों में नहाना भूल गए / जतिन्दर परवाज़
Kavita Kosh से
बारिशों में नहाना भूल गए
तुम भी क्या वो जमाना भूल गए
कम्प्यूटर किताबें याद रहीं
तितलियों का ठिकाना भूल गए
फल तो आते नहीं थे पेडों पर
अब तो पंछी भी आना भूल गए
यूँ उसे याद कर के रोते हैं
जेसे कोई ख़जाना भूल गए
मैं तो बचपन से ही हूँ संजीदा
तुम भी अब मुस्कराना भूल गए