भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बारिश के मौसम में / चित्रा पंवार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जैसे खिली घनी धूप के बाद
अचानक होने लगती है तेज बारिश
वैसे ही कभी चले आना तुम
बिना बताए अचानक
दरवाजे पर खड़े होकर
फैला देना अपनी दोनों बाहें
मैं कभी आंखें मलकर
तो कभी चुटकी काट कर
खुद को भरोसा
दिलाने की कोशिश करूं
और जब हो जाएगा भरोसा
इस बात का
कि हाँ वह तुम्ही हो
तो झूम उठूँगी ऐसे
जैसे बारिश में नहाते हुए खुशी से
झूम उठते हैं नन्हे बच्चे।