भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बारिश में एक शाम / राहुल राजेश

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाहर झमाझम बारिश है
फरवरी की गुलाबी ठंड में
मौसम की यह इनायत बेहद मुलायम
पत्तियाँ धुली हुईं
दिन भर की धूप की थकान से
अभी अभी गर्भ से बाहर आए
मेमनों की आँखों-सी

मिट्टी की सोंधी महक
तुम्हारी साँसों-सी मादक हो रही
भीतर खूब भींजने की इच्छा चढ़ती रात-सी
जवाँ हो रही इस ढलती शाम में
कल फूलों में उतरेगी
अलग ही रंगत, अलग ही खुशबू

अलग ही ताज़गी में नहायी
खिलखिलाएँगी कलियाँ

उदासी की चादर ओढ़े सोच रहा हूँ
तुम कैसे सोच रही हो इस बारिश के बारे में
या कि एकबारगी भींजने उतर पड़ी हो
बारिश में

बाहर बरसती इस बारिश में
भीतर खूब भींगना, खूब रोना चाहता हूँ
मैं भी