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बासंती ऋतु आई / ज्ञानेन्द्र मोहन 'ज्ञान'
Kavita Kosh से
मौसम ने अंगड़ाई ली है
बासंती ऋतु आई।
पीली चूनर ओढ़ खेत में
सरसों है लहराई।
फर फर करती उड़ी पतंगें
लो काटा वो काटा।
सर्दी वाले मौसम का अब
दूर हुआ सन्नाटा।
छत पर होती धमाचौकड़ी
बच्चों की बन आई।
बाग बगीचे फूल खिले हैं
खुशबू रंग लुटाते।
महक उठी है आम्रमंजरी
गुन गुन भँवरे गाते।
बच्चे कुहुक चिढ़ाते हैं जब
तब कोयल शरमाई।
फगुनाहट से गमक उठा है
यौवन का मधुप्याला।
अपने अपने चितचोरों को
खोजे हर मधुबाला।
कामदेव के बाणों से है
घायल हर तरुणाई।