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बिखरी हुई सभा / टोमास ट्रान्सटोमर
Kavita Kosh से
एक
हम तैयार हुए और अपना घर दिखाया
आगंतुक ने सोचा : तुम शान से रहते हो
झोपड़पट्टी जरूर तुम्हारे भीतर होगी
दो
चर्च के भीतर, खंभे और मेहराब
प्लास्टर की तरह सफेद, जैसे श्रद्धा की
टूटी बाँह पर चढ़ा हुआ पलस्तर
तीन
चर्च के भीतर है एक भिक्षा-पात्र
जो धीरे-धीरे उठता है फर्श से
और तैरने लगता है भक्तों के बीच
चार
मगर भूमिगत हो गईं हैं चर्च की घंटियाँ
वे लटक रही हैं नाली के पाइपों में
जब भी हम बढ़ाते हैं कदम, वे बजती हैं
पाँच
नींद में चलने वाला निकोडमस चल पड़ा है
गंतव्य की ओर पता किसके पास है ?
नहीं मालुम मगर हम वहीं जा रहे हैं
(अनुवाद : मनोज पटेल)