भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिछाती है माया यहाँ नित्य जाल / रंजना वर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिछाती है माया यहाँ नित्य जाल
जनम मिल गया जिंदगी पर मुहाल

जरा साँवरे लो इधर भी निहार
सदा ही रहा मानवों का ये हाल

अनेकों किये जा रहा है गुनाह
नहीं कृत्य का किन्तु इसको मलाल

मिटाता ही जाता है अपना भविष्य
दिखायेगा किस को कलंकित ये भाल

समझकर भी अपनी ये माने न भूल
रहे पाटता कूप सरिता व ताल

इन्हें मात्र है तेरी करुणा की चाह
दया तेरी कर देगी इन को निहाल

इसे ऐसी सद्बुद्धि दो मेरे श्याम
रहे सुखभरी जिन्दगानी बहाल