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बिन बजने कोनेा कोना रहय / नरेश कुमार विकल
Kavita Kosh से
करी होम तँ हाथ जरय
हँसलो पर आँखि सँ नोर खसय।
मुँह पर साटल अछि ‘टेप’ मुदा-
बिन बजने कोनो कोना रहय ?
डर लगैये अपन घर सँ
लागय ने कनिको बाट मे
धुआँ उठय आनक छप्पर सँ
आगि अपना टाट मे
आगाँ बढ़ी तँ फांसी टांगल
पाछाँ हटी तँ लोक हंसय ?
मुँह पर साटल अछि ‘टेप’ मुदा-
बिन बजने कोनो कोना रहय ?
अर्थक अर्थ अनर्थ
अर्थ अर्थे कें सत्यानाश करय
आगाँ बढ़बाक ने नाम कतहु
छिटकिए मारि कें आगू बढ़य।
मूर्खक आगाँ विद्वानक अछि
एहि दुनिया मे कान कतय ?
मुँह पर साटल अछि ‘टेप’ मुदा-
बिन बजने कोनो कोना रहय ?
सूर्य भेल छथि अवसरवादी
चान कते खेप साल मे
आइ माछ संग माछ फंसैये
कोनो माछक जाल मे
बनय विरहिनी बारही मास जँ
कोन तिथि कें कहू हंसय।
मुँह पर साटल अछि ‘टेप’ मुदा-
बिन बजने कोनो कोना रहय ?