भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिल्ली मौसी / भाऊराव महंत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बिल्ली मौसी–बिल्ली मौसी,
जब भी घर में आती।
दूध कहाँ है? सबसे पहले,
उसका पता लगाती॥

सूँघ रसोई के बर्तन को,
ताक-झाँक करती है।
अरे! अचानक मत आ जाए,
मम्मी से डरती है।।

दूध पतीले में रक्खा है,
पता लगे जैसे ही।
बिल्ली मौसी दूध हमारा,
पी जाती वैसे ही।।

जिसके कारण बिना दूध के,
हमको रहना पड़ता,
बरबस सब्जी का तीखापन,
तब-तब सहना पड़ता॥