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बुन्देलखंड के आदमी / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
हट्टे-कट्टे हाड़ों वाले,
चौड़ी, चकली काठी वाले
थोड़ी खेती-बाड़ी रक्खे
केवल खाते-पीते जीते !
कत्था चूना लौंग सुपारी
तम्बाकू खा पीक उगलते,
चलते-फिरते, बैठे-ठाढ़े
गन्दे यश से धरती रंगते !
गुड़गुड़ गुड़गुड़ हुक्का पकड़े,
ख़ूब धड़ाके धुआँ उड़ाते,
फूहड़ बातों की चर्चा के
फौवारे फैलाते जाते !
दीपक की छोटी बाती की
मन्दी उजियारी के नीचे
घण्टों आल्हा सुनते-सुनते
सो जाते हैं मुरदा जैसे !!