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बुरे वक़्त में कविता / मदन कश्यप
Kavita Kosh से
ऐसे बुरे वक्त
कैसे लिखी जाए कोई कविता
जब फूलों को देखकर कहना मुश्किल हो
वह फूल ही है
पहाड़ पर चढ़ो
तो वह बालू के ढूह की तरह भहराने लगे
नदी का पानी इतना विषैला हो
कि डुबकी लगाते ही छाल उतर जाए
चाकलेट में मिठास की जगह
विज्ञापनों का शोर भरा हो
साबुन में खुशबू के बदले
प्रचारिका की अदाएं हों
यानी कोई भी चीज वह न हो
जो उसे होना चाहिए
झूठ के नक्कारे पर बजते-बजते
शब्द जब हो चुके हो गरिमाहीन
जब घटित हो जाएं एक साथ
इतनी अनचाही घटनाएं
ऐसे बुरे वक्त में
कैसे लिखी जाए कोई कविता!