Last modified on 30 सितम्बर 2013, at 18:18

बूँद भर पानी के खातिर / पाण्डेय कपिल

बूँद भर पानी के खातिर मन तरस के रह गइल
उमड़ के आइल घटा हालत प हँस के रह गइल

जब कि पथरा गइल कब से ई नजरिया हार के
आज उकठल काठ पर सावन बरस के रह गइल

हर जगह बालू के पसरल बा समुन्दर दूर तक
दूर से आइल ई पातर धार फँस के रह गइल

सोच में बीतत रहल बा जब कि जुग-जुग से समय
जिन्दगी फाँसी बनल गरदन में कस के रह गइल

लोग चारो ओर हमरा पर तरस खाइल बहुत
हाय, करइत साँप अइसन लाज डँस के रह गइल