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बेगानी हुई है धरती / मदन गोपाल लढ़ा


आओ हम!
ऊँचे उठें
सर से छू लें
अन्तरिक्ष की छत को
मुट्ठी में भर लें
आग के गोले-से सूरज को
शीतलता के आगार
चन्द्रमा से मिलें
गलबहियाँ डालकर।

आओ हम!
प्रवासी सारसों के साथ
पार करें महासागर
रात गुजारें
एवरेस्ट की चोटी पर
छुट्टियाँ बिताएँ
उत्तरी ध्रुव पर।

आओ हम!
छलाँग लगाएँ
पाताल लोक में
करीब से देखें
उस शेषनाग को
जिसके फन पर टिकी हुई है
पृथ्वी।

आओ हम!
हवा में उडें
अन्तरिक्ष में घूमें
पाताल में उतरें
बेगानी तो हुई है
केवल धरती
जहाँ सुलग रही है सरहदें
बारूदी सुरगों से
वहशी हाथों में बन्दूकें
तलाश रही है इन्सानी लहू।