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बेचैनी-सहजता / अमरजीत कौंके
Kavita Kosh से
तुमसे प्यार करने के बाद
पता चला मुझे
कि कितनी सहज रह सकती हो तुम
और मैं कितना बेचैन
कितनी सहज रह सकती हो तुम
घर में सदा मुस्कराती
रसोई में कोई गीत गुनगुनाती
अच्छी बीवी के फर्ज़ निभाती
ऐसे कि घर, बाहर
कहीं भी पता नहीं चलता
कि किसी के प्यार में हो तुम
लेकिन मैं हूँ
कि तुम्हारे न मिलने पर खीझ उठता हूँ
बेचैन होता हूँ
किसी खूँटे से बँधे घोड़े की तरह
अपने पैरों के नीचे की
ज़मीन खोदता हूँ
और सारी दीवारें तोड़ कर
तुम्हारे पास आने के लिए दौड़ता हूँ
मेरी बेचैनी
तुम्हारी सहजता से
कितनी भिन्न है।