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बेढब की बहक / बेढब बनारसी
Kavita Kosh से
कहीं कोकिल की करुणामय कुहक है
कहीं दिल से निकलती एक दहक है
चले इस युग में हँसने औ हँसाने
जरा देखो तो यह कैसी बहक है