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बेहद हूँ / पूजा कनुप्रिया
Kavita Kosh से
तुम
एक कंकड़
मेरी गहराई में कहीं
तुम्हारी हलचल
मुझे निकाल देती है
मेरे किनारों की हद से बाहर
तुम
अमर बेल
मेरे तन को समेटे
लपेटे अपने आप में
मेरा जीवन तब तक
जब तक तुम मेरे पास
सुनो
तुम जैसे भी
अच्छे-बुरे
मेरी हद हो
मैं जैसी भी
सही-ग़लत
तुम्हारे लिए बेहद हूँ