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बैठो नहीं यूँ हार के / हरिवंश प्रभात

बैठो नहीं यूँ हार के।
हँसो ठहाका मार के।

धरना पर हमला होता,
मुद्दे हैं अत्याचार के।

पूछो जाकर हाल कभी,
मंत्री जो कारागार के।

सब्जी महँगी जब रहे,
खाओ ज़रा चटकार के।

भ्रष्टाचार की बातों पर,
घर को रखो सँवार के।

गांधी जी की समाधि पे,
बैठो जूते उतार के।

अब कहना क्या बाक़ी है
अनशन पर अन्ना हज़ार के।