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बैम / सांवर दइया
Kavita Kosh से
पीपळ रा पीळा पांन
झड़ता देख
धोळै केसां नै कुचरतो
सळां भरी चामड़ी आळो मिनख
कित्तो बेबस हुय जावै
आ सोच-
आंधी रा थपेड़ा
जड़ामूळ सूं उखाड़ नाखैला
जूनै बिरछां नै ।