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बै तो है छत्तरधारी / मंगत बादल
Kavita Kosh से
बै तो है छत्तरधारी, म्हां रो तो राम रुखाळो ।
जीणो हुयो मुहाल, खेत में होग्यो ऊँट कंटाळो ।
फसल बीज म्हे घरां सिधारिया,
बधग्यो सूड़ घणो ।
खेती खसमां सेती होसी,
कैवै जणो कणो
पण म्हे कीं री मानी कोनी लाम्बी ताण’र सोग्या,
म्हे लापरवा हातो कांई करतौ सूंड-सुंडाळो।
बुगला भगत जिका बैठ्या,
बै म्हां री पीठ तकावै ।
थोड़ी चूक्यां नजर माल नै,
उठा घरां ले जावै ।
काळ-दुकाळ कातरो टिड्डी,सगळा म्हां रा दुस्मण,
म्हां नै ई सेधै है आँधी गरमी सरदी पाळो?
अब तक समझिया कोनी,
नित रा करै वायदा तोड़ै ।
म्हे तो आँख मीचली,पण बै,
चढ्या हवा रै घोड़ै ।
हाथा-जोड़ी कर बै म्हां नै फेर मना लेवैला,
है पंचायत सिर-माथै,पण सागी है पतनाळो!