प्रसंग:
ब्रजवासियों को श्रीकृष्ण के बिना उदासी लगती है। उन्हें आशंका है कि कुबरी ने उन्हें फँसा कर रोक रखा है।
मोहन बिनु मनवां तरसत मोर दिन-रात।
दादुर-मोर शोर बादल के तनीभर नइखे सोहात। भादो-सावन सेज भेआवन गिरत जब बरसात॥
अब ना प्राण रही प्रीतम बिनु कुवरी कुरोग लखात। ‘भिखारी’ सारे ब्रजवासी सिर धुनि पछतान॥