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भरमाते रहना / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

मुझको आकर याद
रोज तुम
भरमाते रहना ।
भरम टूटने पर
कुछ भी नहीं
बचता है जीवन में
मुक्त हुए तो
भला कहाँ तक
उड़ेंगे नील गगन में।
पंख थकें
या प्राण रुकें
पर तुम गाते रहना।
सुख मिलने का
भरम लिये ही
भार दुखों का ढोना
हँसी मिलेगी
यही सोचकर
एक उमर तक रोना।
गीली आँखें
पोंछ दर्द को
सहलाते रहना ।
-0-
[19-6-1995]