भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भागो / इब्बार रब्बी
Kavita Kosh से
दुनिया के बच्चो
बचो और भागो
वे पीछे पड़े हैं तुम्हारी
खाल खींचने को
हड्डियाँ नोचने को
बड़े तुम्हें घेर रहे हैं
हीरे की तरह जड़ रहे हैं
ठोक-पीट कर कविता में
बच्चो, पेड़, चिड़ियो
रोटी और पहाड़ो
भागो
क्रान्ति तुम छिपो
हिन्दी के कवि आ रहे हैं
काग़ज़ और क़लम की सेना लिए
भागो जहाँ हो सके छिपो।
रचनाकाल : 21.04.1981