भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भाग्य / राजेश शर्मा ‘बेक़दरा’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बीज खुद में समेटे हैं पूरा वृक्ष
तना,
पत्ते,
फल,
बीज,
छाया,
अंकुरण उसका भाग्य
तुम में भी बिखेरे हैं
मैने प्रेम बीज
प्रेम,
प्रतीक्षा,
आलिंगन...
मेरा भाग्य