भावुकता किसने जानी / महावीर प्रसाद ‘मधुप’
कवि के मानस की भावुकता जगती में किसने जानी है?
उसके अन्तर में छुपी हुई पीड़ा किसने पहचानी है?
आघात अमित सहते-सहते, जब उर आकुल हो जाता है।
तो उसे तनिक बहलाने को, कवि कोई चित्र बनाता है॥
कविता कह कर मुस्का देती उसको, दुनिया दीवानी है।
कवि के मानस की भावुकता जगती में किसने जानी है?
पर-दुख की ज्वाला में कवि का, जीवन दिन-रात जला करता।
अपने दुःखों को दुलरा कर, वह जग का सदा भला करता॥
वर दे अभिशाप लिया करता, कवि ऐसा अनुपम दानी है।
कवि के मानस की भावुकता जगती में किसने जानी है?
वैभव का उसको मोह नहीं, है निर्धनता से प्यार उसे।
मिलता उपकारों के बदले, अपकारों का उपहार उसे॥
हँसते-हँसते करता रहता नित कष्टों की अगवानी है।
कवि के मानस की भावुकता जगती में किसने जानी है?
पथ में काँटे या फूल बिछे, कब है इसकी परवाह उसे?
अपनी मंज़िल को पाने की, बस रहती हरदम चाह उसे॥
उसके जीवन का लक्ष्य एक, पर-हित में निज कुर्बानी है।
कवि के मानस की भावुकता जगती में किसने जानी है?