भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भिनसर / सनेस / सुरेन्द्र झा ‘सुमन’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चुह-चुह करइत चुहचुहिआ रतिगरे कानमे किछु कहइत अछि
निन्न टूटने टुन्ना-मुन्नी फुद-फुद गप्प जेना करइत अछि॥1॥
बाड़िक आमक डारि-डारिसँ कोइली कुहुकि रहल अछि ओहिना
मायक कोरा बैसि हुलसि कय छी बजैत रस - रस हम जहिना॥2॥
पुरवा हवा दुहारू कतबा गाछ - वृच्छ चट माथ डोलाबथि
अपन कान्ह पर चढ़ा - चढ़ा कय बाबू हमरा जेना घुमाबथि॥3॥
फूल-फूलसँ मधु बटोरि कय रने - वने भमरा उड़ैत अछि
लय जलखड़ी आम बीछै’ जनु छौंड़ा सभ गाछी घुमैत अछि॥4॥
चट - चट कय फूलक कोंढी सभ फुला रहल अछि अपने फुरने
बिना जगौने आँखि मीड़ि हम उठि जाइत छी भोरे अपने॥5॥
चुन - चुन करय चड़ै - चुनमुन्नी फुदुकि एम्हर ओम्हर हो तेहिना
घर - घरसँ जुटि कै हमरा सभ खेल - कूदमे लागी जेहिना॥6॥
काका केर सूगा पिजड़ामे ‘राम-राम’ सुनबय लागल ई
गुरु केँ पाठ सुनाबय पड़ते, की हमरो चेतबय लागल ई?7॥