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भोर भेल / उपेन्द्र दोषी
Kavita Kosh से
ह’ ह’ ह’, भोर भेल।
उडुगण केर मुँह मलीन,
उल्लु सभ नेत्रहीन,
निशिचर, कामुक प्रवीण
चेतल गुनि युग नवीन,
चहुँ दिस नभतल जहान
कारीसँ गोर भेल।
ह’ ह’ ह’, भोर भेल।
फाटल तम केर वितान,
बिहँसल स्वर्णिम विहान,
गाछेक प्रति पात प्राण,
उमकल सुनि मधुर तान,
फूल आश्वस्ति किरण
पाखी केर, शोर मेल।
ह’ ह’ ह’, भोर भेल।
सिनुराएलि उषा दाइ,
प्राची विधिकरी आइ,
रवि हित अरघा सराई,
माँजथि, लूटथि हवाइ,
धरती केर काया पुनि
सोना सन गोर भेल।
ह’ ह’ ह’, भोर भेल।
फूल पात लता कुंज
शस्य-भूमि-पानि-पुंज,
कोकिलक मधुर गुन्ज
गुनि सुनि झूमए निकुन्ज,
गात-गात टेसू केर
कामें अँगोर भेल।
ह’ ह’ ह’, भोर भेल।