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मँड़वा बइठल बाबा, दुलरइता बाबा / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मँड़वा बइठल बाबा, दुलरइता बाबा, चकमक मानिकदीप<ref>माणिक्य का दीप</ref> हे।
कनेयादान के अवसर आवल, बराम्हन कयल हँकार<ref>बुलावा, निमन्त्रण</ref> हे॥1॥
झाँपि झँूपि लवलन<ref>लाया</ref> मइया दुलरइतिन मइया,
रखल बाबा केर जाँघ हे।
जब रे दुलरइता बाबा मुँहमा उघारल,
साजन रहल निरेखि हे॥2॥
का हथी<ref>क्या है</ref> सीता हे सुरुज के जोतिया,
का हथी चान के जोत हे।
अइसन<ref>ऐसी</ref> सुनर कनेया कइसे मोरा भेंटल,
धन धन हको<ref>है</ref> मोरा भाग हे॥3॥
कुसबा ले काँपथि बेटी के बाबू,
कइसे करब कनेया दान हे।
तोड़ी देहु तोड़ी देहु करहु बियहवा,
तोड़ी देहु जिया जंजाल हे।
कुइयाँ<ref>कुआँ, कूप</ref> खनउली आउ बेटी बियाहली,
तनिको न करहु बिचार हे॥4॥
बेद भनइते<ref>उच्चारण करते हुए, पढ़ते हुए</ref> बराम्हन काँपल, काँपी गेल कुल परिवार हे।
हमर धियवा पराय घर जयतन, अब भेल<ref>हुआ</ref> पर केर आस हे॥5॥

शब्दार्थ
<references/>