कर्त्ता करै सो नाही टरै। वाद विवाद कोऊ मति करै॥
देनहार जब कर्त्ता होय। चहुँदिश से ले आवै ढोय॥1॥
जब लगि होत गृही गृहस्त। समुझि न परो उदय अरु अस्त॥
एक दिन बनिगै ऐसी बात। तैसी कहो कही नहि जात॥2॥
गैबी मिलो औचकहिँ आय। सोवत लीन्हो आय जगाय॥
कीन्हो कृपा कियो परमोद। जासे भवो मनहि को बोध॥3॥
प्रगटो भलो गहो ले भाग। उर उपजो सहजै अनुराग।
विसरो सकलै लोकाचार। ना तो छूटो कुल परिवार॥4॥
घायल मृगा चहूँ दिशि घाव। तनको भैगो सोइ सुझाव।
भूषन भवन भाव कछु नाहि। रहिहाँ मौन मनहिके माँहि॥5॥
दुर्मति गइ सब दूर पराय। दया रही पुनि हृदय आय॥
संगति साधू संत सोहाय। गावन लागे बहुत उपाय॥6॥
दर्शन देन लगे सब साधु। सहजै मेटो सब अपराधु॥
श्री गोविंद-गति कौने जान। देखत भवो आनको आन॥7॥
सिगरे साधुजो भ्ये दयाल। जियरा भवो बहुत खुशिहाल॥
काहु दियो है तुलसी माल। काहु तिलक दीन्हो है भाल॥8॥
काहू श्रवन श्रवनिका दीन्ह। काहु दया करि दीन्ह कोपीन॥
काहू धरो है टोपी माथ। काहू दियो सुमिरनी हाथ॥9॥
कोऊ जन मेखल पहिराव। चोला कियो काहु करि चाव॥
काहू दियो तिरखंडी झोरी। काहु दियो अरवंद सुधोरी॥10॥
काहू दियो उडानी रस्सी। अपने हाथ कमर पुनि कस्सी॥
काहू दियो मोतंगा लाय। बटुवा दियो काहु बनवाय॥11॥
काहू दिनोँ सूई दान। चकमक पाथरि करि मनमान॥
काहू दियो है फूलन माल। काहू सेली दियो रसाल॥12॥
कबरी फरुही दीनो जानि। काहु मोरको पंख बखानि॥
काहू शंखहिँ दियो मँगाय। मुरलि आनि कोउ दीन चढ़ाय॥13॥
कुर्त्ता टोपी गुदरा ज्ञान। काहू दियो धीनको ध्यान॥
काहू भेद कहो अवलोपी। काहू झगरा दीनाँे रोपी॥14॥
सुनि 2 सुखिया होत शरीर। सब कोउ कहने लागु फकीर॥
हरिजन राह रमे तब जाहि। दावा काहूसेती नाहि॥15॥
निरदावे जो दावा करै। अपनी आगि आपु जरि मरै॥
मंत्र लियो नहि कतहुँ चोराय। वलसोँ लियो न कतहुँ छिनाय॥16॥
कीन्हाँ सन्तजना वखशीश। जिनको दीन्हो तन मन शीश॥
मत कोइ झगरि मरे बेकाम। सबको शबद है रामै राम॥17॥
बारंबार लगावै कौन। दाल डारि पुनि दीन्हो लौन॥
साँचा होय सोई पतियाय। झूठा फिरि 2 भटका खाय॥18॥
वन्दो गुरू विनोदानंद। जिनके दरश मिटो दुख द्वंद॥
दास-दास है धरनीदास। धरनीश्वर चरनन की आस॥19॥
मंत्रावली जो चित दे पढ़ै। अवशि भक्ति ताके उर बढ़ै॥