भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मकान-1 / श्याम बिहारी श्यामल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अचानक टूटा
तिलिस्म चकमक-चकमक
घिर गया मैं

खमखमाए खड़ी है
मेरे इर्द-गिर्द
दैत्यों की जमात
संगठित