अर्जुन देख रहा था
केवल मछली की आँख
जिसे बेधना था उसका लक्ष्य
नहीं थी मन में आकांक्षा
द्रौपदी को पाने की
नहीं उदित हुआ था
मन में प्रेम
स्वयंवर भी लक्ष्य न था
केवल मछली की आँख को
बेधना ही महती महत्त्वाकांक्षा थी
शायद इसीलिए बंट गई द्रौपदी
सघन उपादानों में
अर्जुन की तनी हुई महत्त्वाकांक्षा
की प्रत्यंचा ने
बांट दिए कुल के संस्कार
बांट दी नारी की एकनिष्ठता