मज़दूर एकता के बल पर हर ताक़त से टकराएँगे !
हर ऑंधी से, हर बिजली से, हर आफ़त से टकराएँगे !!
जितना ही दमन किया तुमने उतना ही शेर हुए हैं हम,
ज़ालिम पंजे से लड़-लड़कर कुछ और दिलेर हुए हैं हम,
चाहे काले कानूनों का अम्बार लगाये जाओ तुम
कब जुल्मो-सितम की ताक़त से घबराकर ज़ेर हुए हैं हम,
तुम जितना हमें दबाओगे हम उतना बढ़ते जाएँगे !
हर ऑंधी से, हर बिजली से, हर आफ़त से टकराएँगे !!
जब तक मानव द्वारा मानव का लोहू पीना जारी है,
जब तक बदनाम कलण्डर में शोषण का महीना जारी है,
जब तक हत्यारे राजमहल सुख के सपनों में डूबे हैं
जब तक जनता का अधनंगे-अधभूखे जीना जारी है
हम इन्क़लाब के नारे से धरती आकाश गुँजाएँगे !
हर ऑंधी से, हर बिजली से, हर आफ़त से टकराएँगे !!
तुम बीती हुई कहानी हो; अब अगला ज़माना अपना है,
तुम एक भयानक सपना थे, ये भोर सुहाना अपना है
जो कुछ भी दिखाई देता है, जो कुछ भी सुनाई देता है
उसमें से तुम्हारा कुछ भी नहीं वो सारा फ़साना अपना है,
वो दरिया झूम के उट्ठे हैं, तिनकों से न टाले जाएँगे !
हर ऑंधी से, हर बिजली से, हर आफ़त से टकराएँगे !!