भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मड़ई में टटिया लगावे / सुभाष चंद "रसिया"
Kavita Kosh से
गुदरी में हमके लपेट के सतावे, हमारी माई हो।
मड़ई में टटिया लगावे, हमारी माई हो॥
सन-सन बहेला पवन पुरवइया।
तनिको ना आवताटे हमके उन्हैया।
ढक के अचरवा से दुधवा पियावे।
हमरी माई हो॥
मड़ई में टटिया लगावे हमारी माई हो॥
पूवरा के बनल बाटे हमरो बिछवना।
मटिया के हमके दिलवली खिलवना।
झंझरी मड़ईया से झाँके ले बिलईया,
हमरी माई हो॥
मडई में टटिया लगावे, हमरी माई हो॥
अपने त करे फाका हमके खियावे।
जोंहरी के पिस-पिस अटवा बनावे।
पछुआ बयरिया जियरवा जरावे,
हमरी माई हो॥
मड़ई में टटिया लगावे हमरी माई हो॥
होते पहपट माई अँगना बहोरे।
दीठिया से बचेके मरचा परोरे।
लीलरा पर कजरा के टिकवा लगावे,
हमरी माई हो॥
मड़ई में टटिया लगावे, हमरी माई हो॥