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मतलाए रे कोकड़ा / पीसी लाल यादव
Kavita Kosh से
मतलाए रे कोकड़ा माढ़े पानी ल मतलाए रे
कु छु नई जाने तइसे जुगती जमाए।
मतलाए रे कोकड़ा....
जोगी-जती जइसे, लगाए धियान हे।
कथनी ह आन अउ, करनी ह आन है।
उवत-बुड़त उस-पुसर नीयत डोलाए
मतलाए रे कोकड़ा....
उज्जर हे पांखी फेर, मन बिरबिट करिया।
धोखा-दगा, छल-कपट, जिनगी के जरिया॥
चिंगरी-कोतरी डेमचुल बर घात लगाए
मतलाए रे कोकड़ा....
कलजुगी साधु कस, जग ल भरमावय।
एक पाँव म खड़े-खड़े, माला टरकावय॥
परे सपेटा टेंगना के, केरेर-केरेर चिल्लाए
मतलाए रे कोकड़ा....