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मत होना उदास / केशव
Kavita Kosh से
खिड़की
खुली रहना
इंतज़ार के पहले ही पल
मौसम का गुलदस्ता लिये
आऊंगा मैं
तुम मत होना उदास
शब्दों ने ही खोली सांकलें
लाये हमें करीब
शब्दों ने ही
हमें दिये पंख
ताकि
जंगल से उसका हरापन
वृक्ष से उसकी छाया
आकाश से उसका विस्तार
नदी से उसका
कोमल सीत्कार
धूप से उसकी मुग्धता
समुद्र से उसकी गहराई
हवा से उसकी तन्मयता
फूलों से उनकी कोमलता
एक-दूसरे के लिये
बटोर लाएं हम
खामोश हैं शब्द
तो क्या
छोड़ तो गये
अपना संगीत
कर गये हमें
संग की महक से सराबोर
इस महक को
धूप की कटोरियों में भर लाऊंगा मैं
तुम मत होना उदास
खुली रखना ख़िड़की
रात की स्याही में
उजाले की कलम डुबो
गीत लिखकर झरने का
लाऊँगा मैं
तुम मत होना उदास।