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मधुशाला / भाग 2 / हरिवंशराय बच्चन / अमरेन्द्र

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चलै-चलै में कत्तेॅ जिनगी
बीती रहलोॅ छै आला,
‘दूर अभी छै’ बोलै सब्भे
पथ केॅ बतलाबैवाला;
हिम्मत नै छै आगू बढ़ियौं
नै हियाव पीछू हटियौं
असमंजस में डाली हमरा
दूर खड़ा छै मधुशाला । 7

बेछुट मूँ सें कहलेॅ जा तों
मधु, मदिरा, मादक हाला,
हाथोॅ में अनुभव करलेॅ जा
एक ललित कल्पित प्याला,
ध्यान लगैनें जा तों सुमधुर
सुखदा सुन्दर साकी रोॅ;
आरो बढ़ले ही जा राही
दूर नै लगतौं मधुशाला । 8

मदिरा-पीयै रोॅ अभिलाषा
बनी जाय जखनी हाला,
ठोरोॅ केरोॅ आतुरतै में
दिखलाबेॅ लागेॅ प्याला,
ध्यानें करतें-करतें जखनी
साकी ठो साकार दिखेॅ,
रहेॅ नै हाला, प्याला, साकी
मिलथौं तभिये मधुशााला । 9

सुन, गिरतें कलकल, छलछल केॅ
मधुघट सें प्याला में हाला,
सुन रुनझुन केॅ, बाँटै छै मधु
बुली-बुली साकीबाला,
आबी गेलौ, दूर नै कुछुवो
चार कदम बस चलना छै;
सुन, चहकै छै पीयैवाला
महकै छै, ले, मधुशाला । 10

जलतरंग बाजै, जखनी लै
चुम्मा प्याला केॅ प्याला,
वीणा झंकृत होय रुनझुन सें
बुलै जबेॅ साकीबाला,
मधु बेचवैय्या रोॅ डाँटो तक
लगै पखावज जों बाजै;
मधु बोली सें मधुमादकता
आरू बढ़ाबै मधुशाला । 11

मेंहदी रचलोॅ मृदुल हथेली
पर माणिक मधु के प्याला,
अंगूरी घुँघटा केॅ लेलेॅ
कंचन रं साकीबाला,
पाग बैंजनी, जामा नीला
डटलोॅ छै पीयैवाला;
पनसोखा सें होड़ लगाबै
आय रंगीली मधुशाला । 12