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मन के दरद / मुनेश्वर ‘शमन’
Kavita Kosh से
मन के दरद बताबूँ केकरा,
अपने जब हो जाय बेगाना,
तब केकरा से कइसन असरा।।
जेकरे खातिर जान लुटइलूँ,
ऊ फेरलक मुँह अप्पन।
कर-कर जतन थकल मन,
उनकर चाल पराये जइसन।
घाव देलक दे, दिल में गहरा।।
के चाहय ऐसन किस्मत,
कि जनम अकारथ लागय।
आँख चोरा के एकाएकी सब,
साँझ पहर में भागय।
लगा-लगा के दु:ख के पहरा।।
उलझन में कुछ सूझय नञ
कोय जाय तऽ कउन डगरिया।
जरते रहय जियरबा हरदम
पसरल घोर अन्हरिया।
आवय इयाद गेल दिन हमरा।।