मन को यह प्रतिकार लगा
छुट्टी ले तुम घर आये
राह तक रहा था मैं कबसे
पाँव जमी पर रुके नहीं
खबर सुनी थी ये जबसे
तुम आये और चले गए
जब बिना मिले ही
क्षण भर को मुझको मेरा
सारा कुछ बेकार लगा
मन को यह प्रतिकार लगा
हरे भरे उपवन में मेरे
उदास शाम घर आई
बहुत दिनों के बाद
नमी आँख में भर आई
बूँद धरा पर व्यर्थ गिरा
खुद मेरा अन्तःकरण रहा
मुझको फटकार लगा
मन को यह प्रतिकार लगा
जहाँ रहो आबाद रहो तुम
और भला क्या कह सकता
बचपन की सुधियों से सुन्दर
उपहार भला क्या दे सकता
यौवन के पहले पड़ाव पर
जीवन के इस ठाट बाट पर
पहली दफा धिक्कार लगा
मन को यह प्रतिकार लगा