भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ममता का अपमान / अमिताभ रंजन झा 'प्रवासी'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मौत का सौदागर तू करे आतंक से प्यार।
हिंसा का पुजारी करे मजलूमों पर प्रहार॥

कोई हो मज़हब तुझे क्या दरकार!
तू तो बस करता जा मानव-संहार॥

इंसानों के मांस लहू से बुझाये भूख प्यास।
लाशों के ढेर पर बैठा करे तू अहठास॥

हैवानियत ईमान क़त्ल तेरे संस्कार।
मासूमो की किलकारी नहीं तुझे स्वीकार॥

मेरे जिगर के टुकड़े तुने जिगर कितने टुकड़े किये।
मेरी नज़र के उजाले तुने ऑंखें कितने सुने किये॥

मेरे घर के दीपक तुने कितने घरों के दीप बुझाये।
मै रोऊ पछताऊ हर पल तुने ऐसे दिन दिखलाये॥

आहत हु तुमसे किया ममता का अपमान।
किसी माँ के कोख से न जन्मे ऐसी संतान॥

हर भूले राही से करूँ मैं फ़रियाद।
घर लौट जा तू करे माँ तुझको याद॥