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मर्तबान का दर्शन / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर
Kavita Kosh से
जब किसी मर्तबान को देखता हूँ
और सोचता हूँ उसके बारे में
तो मुझे पृथ्वी एक मर्तबान लगती है
घड़ी और आदमी भी एक मर्तबान लगता है
यहाँ तक कि मौसम भी