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महक मधुमास की छायी / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
महक मधुमास की छायी, तराना भूल जाता हूँ।
मिलन तुमसे नयन तरस, े सताना भूल जाता हूँ।
भरे खलिहान की शोभा, सदा मन को रहे हरती,
कनक आभा लिये सर्षप, खजाना भूल जाता हूँ।
लहर जाये वहीं छलके, सरस मकरंद मदिरालय,
भ्रमर मन झूमकर मैं तो, पिलाना भूल जाता हूँ।
नये तरुपात या पतझर, वहीं जब कोकिला कुहुके,
मधुर मीठे पलों को मैं, मनाना भूल जाता हूँ।
सहज होता नहीं जीवन, भटकता रह गया तनमन,
मगन हो तो हिया हरषे, छिपाना भूल जाता हूँ।
सहज होता नहीं जीवन, भटकता रह गया तनमन,
पथिक मैं प्रीति का बनकर, रिझाना भूल जाता हूँ।