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महीना दिसंबर हुआ / पवन कुमार मिश्र
Kavita Kosh से
कोहरे का घूंघट,
हौले से उतार कर।
चम्पई फूलों से,
रूप का सिंगार कर।
अम्बर ने प्यार से,
धरती को जब छुआ।
गुलाबी ठंडक लिए,
महीना दिसम्बर हुआ।
धूप गुनगुनाने लगी,
शीत मुस्कुराने लगी।
मौसम की ये खुमारी,
मन को अकुलाने लगी।
आग का मीठापन जब,
गुड से भीना हुआ।
गुलाबी ठंडक लिए,
महीना दिसम्बर हुआ।
हवायें हुई संदली,
चाँद हुआ शबनमी।
मोरपंख सिमट गए,
प्रीत हुई रेशमी।
बातों-बातों में जब,
दिन कहीं गुम हुआ।
गुलाबी ठंडक लिए,
महीना दिसम्बर हुआ।