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माँ! तेरी ख़ुशी क्या है / संदीप द्विवेदी

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बचपन की उछलती गोद में
अनेकों सुरीले सपने लिए
उन्ही सपनो के बीच
जाने क्या सोचता
और अक्सर पूछता अपनी माँ से
माँ तेरी ख़ुशी क्या है ?
मुस्कुराकर होती तब गुफ्तगू
न जाने इसमें जवाब क्या है ?
माँ तेरी ख़ुशी क्या है ?

स्कूल की खिड़की से
बाहर झांकता हुआ
सड़क पर आते जाते लोगों के बीच
माँ को ताकता हुआ
फिर उभर आया वही प्रश्न
मेरी माँ की ख़ुशी क्या है ?
फिर बड़ी सुकून भरी हथेली में
देकर अपना छोटा हाथ
फिर पूछा मैंने
माँ तेरी ख़ुशी क्या है ?
फिर प्यार से चूमा उसने तब
थाम लिया मेरा बैग
न जाने इसमें जवाब क्या है ?
माँ तेरी ख़ुशी क्या है ?

बढती उम्र ने दी
तोहफे में थोड़ी समझदारी
छूट गई थी अब तक
गुड्डे गुड़ियों की यारी
सुलझ गये थे अब तक कई प्रश्न जिन्दगी के
पर आज भी था वही प्रश्न अनसुलझा
मेरी माँ की ख़ुशी क्या है ?
फिर पूछा मैंने
माँ तेरी ख़ुशी क्या है ?
फिर वही मुस्कराहट
फिर वही गले लगा लेना
न जाने इसमें जवाब क्या है
माँ तेरी ख़ुशी क्या है ?
टल गयी फिर ये बात
मेरी माँ की ख़ुशी क्या है ?


फिर एक लम्बा वक्त गुज़र गया
मेरा हाथ मेरी माँ के हाथ से
जाने कब बड़ा हो गया
पीछे रह गया बचपना कई साल
लेकिन अब तक साथ था वो प्रश्न
मेरी माँ की ख़ुशी क्या है ?
आज झल्लाकर,गुस्साकर
फिर पूछा मैंने
माँ ! तेरी ख़ुशी क्या है ?
माँ ने उँगलियों से सवारे मेरे बाल
करती हुयी ठीक मेरे शर्ट की कालर
मेरी माँ ने कहा
बेटा..तेरी ख़ुशी क्या है ?
जैसे प्रश्न ही था जवाब
कमी थी अब तक जैसे
माँ के बोलने की
कल तक लगाती थी
वो मुझे सीने से
आज कद में मैं बड़ा था
आज मैंने लगा लिया
छलकती रह गयी मेरी आंखें
जाने क्या सोचती हुयी
फिर कभी नही पूछा माँ से
माँ तेरी ख़ुशी क्या है ?
फिर कभी नही पूछा..