भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
माँ कहलैन / दीपा मिश्रा
Kavita Kosh से
माँ कहलैन
धान बनूँ
हम धान बनलौं
बाबू कहलैन
आगि बनूँ
हम आगि बनलौं
बाबा कहलैन
अहाँ बाट बनूँ
हम बाट बनलौं
दादी कहलैन
अहाँ दीप बनूँ
हम दीप बनलौं
धान
आगि
बाट
दीप
सबकिछु बनि जखैन
हम अपनाकेँ चीन्हब
शुरू केलौं
हमर दीप मिझा गेल
बाट कतौ हरा गेल
खोंइछमे धान भरि देल गेल
आगिक संग नब परिचय भेल
हम बस धान आ आगि संग
जीवन बितबय लगलौं
बाबा दादी के बात मोनकेँ
कहुखनकेँ मथैत रहल
फेर एक दिन
एकटा सूर्य चमकल
ओकर इजोतक चकचोन्हिसँ
दीप पजैरि गेल
बाट सोंझा आबि गेल
आब हम सूर्य दिस तकैत
धान,आगि संग
हाथमे दीप लेसने
नब बाटक सन्धानमे लागल छी