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माँ के लिए / मनोज तिवारी
Kavita Kosh से
माँ के लिए
आज तुम नहीं हो माँ,
सिलबट्टे पर पिसी चटनी का स्वाद
याद आ रहा है
पूजा कर लौटते,
प्रसाद बाँटते तुम्हारे हाथ
बार - बार पलकें झपकती तुम्हारी आँखें
सांत्वना देते बुदबुदाते
तुम्हारे होठ याद आ रहे हैं।
जब भी अलगनी पर सूखती
साडी देखता हूँ
दूर क्षितिज में
तुम्हारे चित्र उभर आते हैं
मेरे सपनों में प्रवेश कर
झुर्रियों से भरे हाथों से
मेरे माथे को सहलाती- सी
रातभर मेरे सिरहाने बैठी रहती हो,
मेरे हिस्से की धूप-हवा-पानी में
समा गई हो तुम।
झक सफेद बालों से भरा
सनातन तुम्हारा चेहरा
अक्सर याद आता है।
माँ, आज तुम नहीं हो
तुम्हारे स्पर्श की अनुभूति
आज भी संबल है मेरी।