माँ के सपने, केवल अपने
सुख-दुख भी तो
होते होंगे ।
सूख गई
हैं फ़सलें सारी
खरपतवारों के आने से
जुगनू निकल न पाए बाहर
अन्धकार के
तहख़ाने से
कोई सिसकी नहीं सुनी पर
क़ैदी चुप-चुप
रोते होंगे ।
अमरित
चाहें देव भयाकुल
विष चाहें, विश्वासी योगी
नीलकण्ठ-सी
सिद्ध-साधना
केवल साधक माँ की होगी
सारे बोझे ढोती जैसे
शेष धरा को
ढोते होंगे ।